ख़लाओं से बाहर हो तो खिल जाती है
गुम न हो खुद में तो मिल जाती है
इतनी मासूम है कि फरिश्तों को मात दे
हर पूनम की रात चाँद देखकर मचल जाती है
कहने पे आए तो मचलती है झरनों सी
चुप हो जाए तो जैसे जुबां सिल जाती है
वो जिसके साथ हो, वो खुशनसीब जहां में
वो जिसके पास हो, जन्नत ही मिल जाती है
वो महबूबा हो, बहन, माँ हो, मौसी-बुआ
जिस रूप में किसी को हासिल मन्नत मिल जाती है
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