Wednesday, April 28, 2010

कली चटकी कहीं, फूल खिला कोई

कली चटकी कहीं, फूल खिला कोई
मन उपवन था उजड़ा-सा
पतझड़ था युगों से आँगन में
आई बसंत बहार
लाया उसे बुला कोई
कूक कोयल की, भँवरे का गुँजन
तड़प रहा था, कबसे सुनने को मन
मन मुराद पूरी हुई, शुभ घड़ी आया कोई
गुलाब खिला, मोगरा महका
संदल चहका, मन खुश्बू से बहका
मन जैसे सोना हुआ
उस पर सुहागा लाया कोई
मन को जैसे पंख लगे
उड़कर आया पास तेरे
पीकर जिसको बहका नीरव
ऐसी मधु लाया कोई
कली चटकी कहीं फूल खिला कोई

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।