Wednesday, July 21, 2010

तुम एक नज़्म हो


1

सपनों से बहुत दूर रहती
हूँ मैं,
और ख़ौफ़ज़दा भी,
इसलिए न आते हैं,
न आने देती हूँ
अपने करीब इन्हें
2
तुम एक ख़्वाब हो
ऐसा ख़्वाब,
जिसे देखने को
मेरी आँखें मुझे
इजाज़त नहीं देती
3
तुम मेरे हाथ में हो,
और सोच रही हूँ
ख़्वाब जब हाथों में आते हैं, तो
हाथों को ये डर
क्यूँ बना रहता है
कि पकड़ कहीँ
ढीली ना हो जाए
कभी-कभी दिल करता है
तुम्हें सारी
दुनिया को दे दूँ
सारी दुनिया में
तुम्हें देख

सोच रहा हूँ तुम शायरा होती, तो
कभी चुपके से तुम्हारी इन
नज़्मों को पढ़ता
क्या हुआ गर जो तुम
शायरा नहीं,
मैंने जान लिया हैं तुम्हें
कि कितनी मासूम,
संजीदा, जज़्बाती
औ’ खूबसूरत
नज़्में हैं, तुम्हारे अंदर...
वो नज़्में तुम ना सही
मैं लिखूँगा,
और तुम्हारे तसव्वुर को
शक्ल दूँगा लफ़्जों की...
क्या हुआ जो तुम शायरा नहीं
देखो मैं-तुम
हमख़याल, हमराज़
हमजज़्बा तो हैं
तुम कह नहीं सकती
मगर मैं समझ सकता हूँ
तुम्हें,
तुम एक ऐसी नज़्म हो
जिसे पढ़ा नहीं
समझा जा सकता है
महसूसा जा सकता है
और मैंने तुम्हें पूरी
शिद्दत से समझा,
महसूसा है।
कितना जहेनसीब हूँ,
एक नज़्म को अपनी
आँखों में सजाया है
मैंने ख़्वाब की तरह,
मेरे आसमान में तुम
हो
किसी सतरंगे इंद्रधनुष की तरह
आसमान की
पाक आयतें
शफ़क की खूबसूरत नज़्म
मेरे मौसम में तुम हो
कोंपल की तरह बसंत की
पहली नज़्म - ।
मेरे आँगन में तुम हो
ताज़ा गुलाब की तरह
फूलों की
महकती नज़्म - ।
मेरे समंदर में तुम हो
हर आती-जाती
लहर की तरह
साहिल की हमसफर नज्म - ।
क्या हुआ जो तुम
शायरा नहीं - ।
तुम खुद एक नज़्म हो
आसमान से उतरी
किसी परी की तरह
मेरे बचपन की
मासूम नज़्म....।
तुम एक नज़्म हो, जो
शाया हुई है
तुम्हारी शक्ल में...।
मैंने तुम्हे जाना है अमिता

5 comments:

  1. आप की रचना 23 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
    http://charchamanch.blogspot.com

    आभार

    अनामिका

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  2. "तुम कह नहीं सकती
    मगर मैं समझ सकता हूँ"

    बहुत ही बेहतरीन नज़्म, बहुत खूबसूरत, बहुत खूब!

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  3. बहुत सुन्दर और भावनात्मक रचनाएँ!

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  4. सुन्दर ....सारी नज्में अच्छी लगीं

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  5. बहुत ही बेहतरीन नज़्म, बहुत खूबसूरत, बहुत खूब!

    संजय भास्कर

    ReplyDelete

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