Saturday, March 20, 2010

मेरे गीत पंछी गीत

मेरे गीत पंछी गीत की तरह

एक पल गूँजे हवा में
दूजे पल हो गए हवा
अनगूँजे से रहे फिज़ा में
मेरे मीत ने क्या इन्हें सुना

किसी ने सुने तो बहका
किसी ने न भी सुने
किसी ने कर दिए
सुनकर भी अनसुने
मेरे गीत पंछी गीत की तरह

है जब कोई सुनता नहीं
इन दर्द भरे गीतों को
क्यों गाकर मैं दुख अपनाता
प्यास भरी ये दर्दील धुनें
[मेरे गीत पंछी गीत की तरह

अपनी आँखों में भर बेचैनी
नभ में मैं मँडराता हूँ
कह नहीं देता क्यों आँखों से
अब ना कोई ख़्वाब बुनें
मेरे गीत पंछी गीत की तरह

मेरे स्वर को नेह मिले यदि
गूँज उठे ये अखिल विश्व में
आज तो लेकिन कटू सत्य यह
छंद हैं आधे अधूरे अनमने

2 comments:

  1. पंछी तो लुप्त हो रहे हैं...अब ऐसी कविता की आस कैसे बचेगी ?.....आपकी कविता अच्छी लगी....
    विश्व गौरैया दिवस-- गौरैया...तुम मत आना...कविता...
    http://laddoospeaks.blogspot.com

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।