Saturday, November 14, 2009

पचमढ़ी




लंबे समय के बहाव से
काटे गए गहरे, उथले, ऊँचे-नीचे रास्तों के बीच
रेत, गोल पत्थरों और
हरियाली के छोटे-छोटे टापूओं को चारों ओर से घेरकर
कल-कल बहता रहता है
झरनों से गिरने के बाद
समतल में पानी...
.....


कैसे अपने बहने / होने / बहते रहने को
किसी भव्य चौखट में जड़ी
कलात्मक तस्वीर की तरह
मढ़ देता है हमारे अंदर
मुझे अक्सर होती है हैरानी...।

1 comment:

  1. यूँ लग रहा है जैसे आप अभी पचमढ़ी टूर कर लौटे हैं....

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।