ढलता जाता जीवन मेरा
जलता जाता तन-मन मेरा
मद्धम-मद्धम साँसे चलती
कंठ अवरूद्ध होता जाता
कुछ चलता कुछ गिरता
इस तरह है आलम मेरा
ढलता जाता जीवन मेरा
पंखों को आहत कर
तुम तो अपनी राह हुए
अब कैसे मैं उड़ पाऊँगा
दूर बहुत है अभी बसेरा
ढलता जाता जीवन मेरा
बुझता-बुझता दीपक हूँ मैं
उस पर तुम तूफाँ लाए
अब कैसे मैं जल पाऊँगा
दूर बहुत है अभी सवेरा
ढलता जाता जीवन मेरा
कर्मों से विश्वास उठा जब
भाग्य को मैंने मान लिया
सबकुछ शायद गलती मेरी
दोष नहीं है कुछ भी तेरा
ढल जाऊँगा जल्द सदा को
बस यादें ही रह जाएँगी
यादों को भी बिसरा देना नीरव
बदला पूरा होगा तेरा
ढलता जाता जीवन मेरा
शानदार अभिव्यक्ति!
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