खुलकर जब भी हँसना चाहा
दिल जाने क्यों भर आया
खुशी हरदम बेगानी निकली
खुशी हरदम बेगानी निकली
गम को अपना पाया
मधुशाला में था कोलाहल
मन मेरा भी मतवाला था
मधु को जब भी चखना चाहा
बस हलाहल ही पाया
दिन अकेले ही बिताकर
शाम को तनहा बनाकर
रात को जब साथ चाहा
स्वप्न सजा न पाया
सुबह जब होने को थी
दिल बहकने लगा था
जग को जगाने लेकिन
मन पंछी चहचहा न पाया
रिश्ते नातों को भुलाकर
जब चल पड़ा यायावर
साथ जिसको रहना था हरदम
वो भी छोड़ चला मेरा साया
manbhavan.narayan narayan
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