क्यों मेरे घर अँधियारा है
दीप मेरे क्यों जल ना पाते
हर जतन अपनाता हूँ
तुमको उजाला, मुझको अँधियारा हरदम
ये कैसा बँटवारा है
रोशन जब सबका...
मुझको भी तेरी चाह प्रिये
तुझको भी मुझसे प्यार प्रिये
तब मिलन में क्यों ये बाधा
क्या मुझसे बैर तुम्हारा है
रोशन जब सबका...
हर मयकश को मधु पिलाते
मुझको ही बस प्यासा रखते
हम भी मतवाले मधुशाला पर
क्या बनता नहीं हक हमारा है
रोशन जब सबका...
हर कश्ती जब साहिल पाती
मेरी ही क्यों भँवर में जाती
इतना न करो सितम ओ सागर
मुझको भी प्रिय किनारा है
रोशन जब सबका...
गैरों पर यूँ रहमो करम
बस मुझ पर ही जुल्मों सितम
कैसे प्रियतम हो तुम नीरव
ये कैसा प्यार तुम्हारा है
रोशन जब सबका...
अच्छी रचना है।बधाई।
ReplyDeleteवाह, क्या बात है, शानदार!
ReplyDelete