कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से
युगों-युगों से प्रतीक्षारत था
बैठा मौन अटल किंतु विकल
ना तुम आते हो, ना आता है तुम्हारा कोई संदेश पवन से
कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से
घोर वन अँधेरी राहें
मौन हृदय बेचैन निगाहें
ना तुम बतलाते हो
ना कोई बतलाता है राह गगन से
कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से
लय मेरी टूटी जाती है
छंद विस्मृत हो रहे
ना तुम गाते हो
ना गाता है कोई गीत मिलन के
कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से
बने निर्दयी इतने तुम कैसे
क्या याद तुम्हें ना आई होगी
जो सचमुच तुम भूले नीरव शाप लगेंगे तुम्हें विरहन के
कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से
ek bahut achchhi kavita padhne ko mili mujhe...
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