सीधी-सच्ची राह चला जब
ले मंजिल की चाह चला जब
हर संकेतक ने किया गुमराह टूट चला मन का विश्वास
बतला दे कोई मुझको...
मैंने अपनी राह चुनी जब
निज मंजिल की चाह चुनी जब
तब तुमने क्यों रोका मुझको दे नेह से निज आवाज
बतला दे कोई मुझको...
उन्मुक्त पंछी सा मन मेरा
जब जहाँ चाहा किया बसेरा
नोच दिया मेरे पंखों को बंद किया मेरा परवाज
बतला दे कोई मुझको...
मेरा अपना तब चिंतन था
मेरा अपना तब दर्शन था
मेरा सत्य हुआ खंडित नीरव जब जाना तेरे जीवन का राज
बतला दे कोई मुझको....
बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना, अच्छे भाव !
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