सड़क के दोनो ओर से पेड़ कट गये
हरे-भरे शहर के जैसे पर कतर गये
वैसे भी मयस्सर नहीं थी ताजादम हवा
उस पर बुज़ुर्गों के भी साये हट गये
रातों को बहुत सब्जोहसीं हो गया मंजर
चौराहों पे नकली दरख्त बिजली से सज गये
कैसे कोई ढ़ूढ़ेगा तेरा पता शहर में
पुराने बरगद मोड़ोगलियों से कट गये
घबरा के अब कहीं जा भी नहीं सकते
गाँव भी सब शहरों से सट गये
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