मंदिर में जाने से अच्छा
किसी बाग में तुझसे मिलने आऊँ
किसी देव की आराधना से अच्छा है
तनहाई में यादों के ख्वाब सजाऊँ मैं
घड़ियाल बजाने से अच्छा
तेरे पायल की झंकार सुनुं
माला जपने से अच्छा है
तुझ तक खत भिजवाऊँ मैं
होम-हवन से अच्छा
प्रियतम, तेरे होंठों का चुंबन
प्रार्थना करने से अच्छा है
गीत प्यार का गाऊँ मैं
आरती उतारने से अच्छा
तेरे रूप का गुणगान करूँ
सिंदूर चढ़ाने से अच्छा है
प्रियतम की माँग सजाऊँ मैं
कदली-फल खाने से अच्छा
तेरे हाथों से अंगूर चखूँ
चरणामृत पीने से अच्छा है
तेरी मधुशाला में आऊँ मैं
भक्त कहाने से अच्छा
मस्ती का मतवाला कहलाऊँ
पुजारी कहलाने से अच्छा है
दुनिया मैं दीवाना कहलाऊँ मैं
नहीं चाहता मैं कोई वर
नास्तिक हूँ, फिर क्यों आस्तिक बन
पत्थर को शीश झुकाऊँ
मेरा पूजन-आराधना, अर्पण-तर्पण, व्रत-विधान तू
तू ही मेरा सब कुछ नीरव, तुझ पर बलिहारी जाऊँ मैं
समर्पण भाव संग उम्दा रचना.
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