कई रातों को ऐसा भी होता है
कि नींद नहीं आती,
बिल्कुल नहीं
आती है तो बस
याद आती है
तेरी याद।
कई रातों को ऐसा भी होता है
तब बेचैन सा में,
बिस्तर पर बदला करता हूँ
करवटें
और हर करवट़
छोड़ जाती है
छोड़ जाती है
मन की चादर पर
तेरी यादों की
नई सिलवट।
कई रातों को ऐसा भी होता है
कभी तकिए को
कभी तकिए को
लेटा हूँ
बाँहों में,
कभी बाँहों को,
बनाता हूँ तकिया,
कभी चौंक कर
जलाता हूँ बिजली
जलाता हूँ बिजली
कभी अँधेरों को
मीत बनाता हूँ
मीत बनाता हूँ
करता हूँ
गुफ्तगू
लेकिन नींद तब भी नहीं आती,
आती है तो बस
आती है तो बस
याद आती है
तेरी याद
कई रातों को ऐसा भी होता है
और तब तेरी यादों के
ताने-बाने बुनता है
मन
और उधेड़ता फिर से
उनको
इसी उधेड़बुन में
अचानक
ना जाने कब
आँखें बुनने लगती हैं, ख्वाब
तेरे ख्वाब
कई रातों को ऐसा भी होता है।
सही कहा..कई रातों में ऐसा भी होता है.
ReplyDeleteबढ़िया है.