कितनी जल्दी बीते वे दिन
जबकि हम-तुम साथ रहे
युग बीते यों पल बीते
तनहाई हम काट रहे
पल भर तुमसे नजरें मिलती
लगता बहार आ गई चमन में
अब तो खिज़ां है सब ओर
चार दिन हम बीच बहार रहे
अब तो तेरी आहट सुनने को
हरदम दिल मचलता है
कितने नादाँ थे हम तब
जो तेरी पायल से बेजार रहे
चीख मेरी दबकर के रह गई
शहनाई की गूँज तले
कितनी जल्दी डोली सज गई
कितनी जल्दी कहार गए
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करे !!
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