चिर प्रतिक्षित है आहट ये
और चिरपरिचित भी शायद
पायल की कोई मधुर झंकार मन सुनता है
दूर किसी के....
कोमल पाँवों का स्वागत
फूलों बिछाकर राहों में
काँटे राहों के पलकों से मन चुनता है
दूर किसी के...
ये कर लूँगा वो कर लूँगा
ये मैं दूँगा वो मैं दूँगा
उनके आने से पहले ही सपने मन बुनता है
दूर किसी के...
बहुत दूर से आए हैं
बहुत हैं ये थके-थके
'प्यास लगी है पानी ला' मन सुनता है
दूर किसी के...
नेहिल तेरी चुभन है रे मन
स्वप्निल तेरी है छुअन
यहीं ठहरूँगा अब कहेगा नीरव मन बुनता है
दूर किसी की...
बेहतरीन!!
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल