इस बार तुम जब लौटोगी
मेरी बाँहों में
तो ये लौटना
चिर-प्रतिक्षित होगा
कितनी आकुलता
बेबसी
शून्यता और तड़फ भरे
काटे ये महीने
दिन, पहर, घंटे और पल।
इतने दिनों में
मैं हुआ हूँ ज्यादा आश्रित
और सहाराप्रिय
और शायद तुम भी
लेकिन लौटी हो नई ऊँचाइयों
और गहरी सोच
और गहरी संवेदना लेकर
ज्यादा समर्थ, ज्यादा समझ
ज्यादा ऊर्जा, ज्यादा अनुभव लेकर
मैं तट पर बैठा
लहरें गिनता
बाट ही जोहता रहा
और तुम लौट रही हो
गहरे पानी से मोती लेकर
नीरव जी,
ReplyDeleteविरह के भावों को सुन्दर आयाम दिये हैं आपने अपनी इस रचना में.
लिखते रहिये
मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com
vireh ke baad ka milan nishchay hi ati sukhdayi hota hai. kahin 'un ki' safalta se irshya na jarne lag jana.
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