तुम कहती हो कुछ
जब (एक लंबी कशमकश के पश्चात)
तो लगता है जैसे
काट रही हो
खड़ी पकी फसल (अनिच्छा से)
जैसे चाहती हो कि
सूखी फलियाँ कुछ
और दिन रहें
सूखी शाखों पर
और फिर किसी दिन
हवा के तेज-हल्के
झोंकों से बिखर जाएँ
जिन्हें भुरभुरी जमीन
कर ले आत्मसात
.....
और मैं कहता हूँ जब तब
कुछ
तो लगता है (जानता हूँ मैं तो)
जैसे बो रहा हूँ बीज
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