तुम पूजो यदि पत्थर
वो देवता बन जाए
मैं यदि देव को
तो वो पत्थर हो जाए
अपने-अपने भाग्य की बात
तुम्हारी कश्ती तो मझधारों
से भी बचकर आ जाए
मेरी कश्ती लेकिन हरदम
किनारों से ही धोखा खाए
अपने-अपने भाग्य की बात
तुम चलो यदि राह कँटीली
वह राह सरल हो जाए
मैं चलूँ राह कोई भी
वह काँटों से भर जाए
अपने-अपने भाग्य की बात
सूख रहा हो कंठ तुम्हारा
साक़ी तुम तक चल कर आए
यह तृषित नीरव हरदम
हलाहल ही पाए
अपने-अपने भाग्य की बात
bahut sundar!!
ReplyDeleteवाह बहुत खुब, दिल बाग बाग हो गया।
ReplyDeleteअच्छी रचना,आभार.
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