गीत है बुझा-बुझा
नेह की ये रश्मियाँ
हम बरसाए तो कैसे
कभी बाती तो कभी तेल नहीं
दीप है बुझा-बुझा
प्रीत के इस गीत को
हम सुनाए तो कैसे
कभी मीत, कभी प्रीत नहीं
गीत है बुझा-बुझा
रात के इस स्वप्न को
हम सजाए तो कैसे
कभी नींद, कभी कुमकुम नहीं
स्वप्न है लुटा-लुटा
संदेश अपने प्रिय को
हम भिजवाएँ तो कैसे
कभी शब्द कभी मेघ नहीं
याद है धुआँ-धुआँ
दर्द नीरव दिल का
हम मिटाए तो कैसे
कभी वो कभी हम नहीं
तीर है चुभा-चुभा
गीत है बुझा बुझा...वाह! बहुत बेहतरीन!
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