एक लड़की
निकलती है अपने ऑफिस से
प्रत्यंचा से छूटे तीर की तरह
(रास्ते में खरीदते हुए फल जो उसे बेहद पसंद है)
सोचती है
कहीं देर न हो जाए
और
सुननी न पड़े
शिकायत
देखती है न इधर, न उधर
रूकती नहीं चौराहों पर
लाल सिग्नल के
हरे होने से पहले ही
पीली रोशनी में
पड़ती है निकल
डाँटती, झुँझलाती
राह काटते
राहगीरों, वाहन चालकों पर
तेज फर्राटे से चलाती
हुई गाड़ी
दू....र
से नजर आता है,
राह में
उसे लेने
पैदल निकला कोई
भर जाती है
खुशनुमा अहसास से
आ जाती है पास
ताकि दूसरे दिन
फिर
बूमरेंग-सी
निकल सके
घर से....
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