Monday, December 7, 2009

{ढ़ाई आखर

यार! तुम बड़े साहसी हो

बड़े बेलौस, बिन्दास
अपनी कविताओं को
प्रेम-कविताएँ कह लेते हो
.........................
मैं तो अपनी लेखनी को
कविताएँ कहने में हिचकता हूँ
कविताओं को प्रेम-कविताएँ
इतनी आसानी से तो नहीं
नहीं ही कह सकता हूँ
सच तो यह है,मैं इस
शब्द को अपनी ज़ुबान पर
लाने में डरता हूँ
(और क्या सारी कविताऐं
प्रेम-कविताऐं नहीं होतीं )
...............
दुनिया सच कहती है
मैं अभी भी प्रेम करता हूँ

1 comment:

  1. मगर कहते हैं कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते....कुछ अपने अनुभव भी बताईए...।

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।