देखो ! उतरने को है
कविता
कवि अनमना हो रहा है
भीड़ के बीच भी
तनहा हो रहा है
..............
उतरती है रचना
बेकली बढ़ती जाती है
कला अपने माध्यम को
कितना तपाती है !
कविता
कवि अनमना हो रहा है
भीड़ के बीच भी
तनहा हो रहा है
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उतरती है रचना
बेकली बढ़ती जाती है
कला अपने माध्यम को
कितना तपाती है !
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