मन करता है गीत लिखूँ कोई
शब्द जिसके लड़खड़ा कर
सुरूर में कुछ गा रहे हो
छंद जिसके प्रीत पाकर
मस्ती के लहरा रहे हों
हो मदमस्त जो भी सुने
ऐसा मधुगीत लिखूँ कोई
मन करता है गीत लिखूँ कोई
हीर-राझाँ के तराने
बन जाए जिससे अफसाने
शीरीं-फरहाद के फसाने
हो जाए जिससे पुराने
तेरी आँखों की स्याही से
अधरों पर ऐसी प्रीत लिखूँ कोई
मन करता है गीत लिखूँ कोई
गीत जिसे सुनकर दिलवाले
झूम-झूमकर गाएँ
प्रीत जिसे सुनकर दिलरूबा
मुस्काए आँखों से, होंठों से शरमाए
प्यार करने की निराली
नीरव ऐसी रीत लिखूँ कोई
मन करता है गीत लिखूँ कोई
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