बारिश के पानी को
छत के परनाले में
एक पाइप लगाकर
छोड़ दिया एक टंकी में
धारदार-तुलतुल-बूंदबूंद
जिस तरह से आए
हो जाए इकट्ठा....
काश ! मैं भर सकूं
खुद को भी इस तरह
.............
मगर आसमान से मेरी छत पर
इन दिनों बरसती है
उदासी झमाझम
कर लूँ संचित !
ढेर चाहे कचरे का हो
मूल्यवान हो जाता है एक दिन
देखा-सुना है
मेरी उदासी भी अर्थवान हो उठेगी
इकट्ठी हो कर......!
अद्भुत लिखा है भाई.......
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