Thursday, October 22, 2009

लक्ष्य


1

मैं उपलक्ष्य नहीं
लक्ष्य पहचानता हूँ
इसीलिए
मछली की आँख नहीं
द्रुपद कुमारी की
बाँह थामता हूँ
2
लक्ष्य मेरा भी है
लेकिन
वह मछली नहीं
आँख नहीं
द्रुपद कुमारी नहीं
3
खो सा गया है
लक्ष्य मेरा
उपलक्ष्यों के लबादे के नीचे
या कि
दुबका हुआ
काँपता है
4
उपलक्ष्य नहीं
लक्ष्य नहीं
दौड़ नहीं
केवल
घूमना-घूमते रहना सतत
कोल्हू के चहुँओर
निरंतर....
5
क्या लक्ष्य पर
पहुँच कर
हो जाना
लक्ष्यहीन ही होता है
लक्ष्य
या कि
पहुँचना
उस बिंदू तक
जिसके आगे
लक्ष्य नहीं।

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।