Sunday, April 11, 2010

ख़त


कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
दर्द भरे अफ़सानों को,
घोल अश्कों की स्याही में
जज़्बातों को कलम बनाकर
दिल पर उकेरे जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
संबोधन क्या दें? बस
इसी विवशता के कारण
लिफ़ाफ़े में भरकर
कोरे ही भिजवाए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
कभी बाद संबोधन के
लरज़ती काँपती ऊँगलियों से
मुश्किल से वही तीन अल्फ़ाज
बार-बार बनाए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
ढेर सारा लिखकर भी
और लिखने की ख़्वाहिश से
हाशियों पर तारीफ में
चंद शेर लिख दिए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
लिखने वाला लिखता ही नहीं
पाने वाला पाता ही नहीं
आँखों से आँखों तक लेकिन
रोज़ाना पहुँचाए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
कभी हवाओं के दामन पर
कभी बादलों के सीने पर
लिखकर फूलों की खुश्बू से
नीरव तक पहुँचाए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं

2 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण रचना है। बहुत सुन्दर!! बधाई।

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  2. बहुत सुन्दर कविता है ! बधाई ! ख़त के प्रकार के ज़रिये आपने मानव मन को ही टटोला है !

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।