Friday, March 19, 2010

तन्हाई के साथी


चुकने को है जीवन की मधुता

अब तो हलाहल हैं शेष रहा
कितनी जल्दी पी ली हमने
सुख के लम्हों की मदिरा
जाने को है मधुबाला अब तो
रीता मधुघट ही निःशेष रहा
कितना मधुमय था तब आलम
जब हम मधुशाला में आए
महफिल में जब हम थे साक़ी को
दूजा न कोई विशेष रहा
क्या खबर थी इतनी कम
होती है उम्र मतवालों की
मदहोशी में क्यों डूबे हम
क्यों न वक्त का हमको होश रहा
चुन लूँ खंडित सागर, टूटे प्याले
मधुमय यादें, मधुमय बातें
तन्हाई के यही साथी
मधुमय युग का इतना ही अवशेष रहा
पिएँगे हलाहल भी उतने ही प्यार से
जितने प्यार से पी थी मदिरा
यम पूछेगा अंतिम इच्छा नीरव
कहेंगे रख ले साक़ी का वेश जरा

1 comment:

  1. वाह!! आपकी माधुशाला! बढ़िया.

    ReplyDelete

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।